Sanskrit Subhashitas 113

Sanskrit
न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्,
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं,
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

Hindi
जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।

English
It cannot be stolen by thieves, Nor can it be taken away by kings. It cannot be divided among brothers, It does not cause a load on your shoulders. If spent.. It indeed always keeps growing. The wealth of knowledge Is the most superior wealth of all!

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