Sanskrit Subhashitas 124

Sanskritचिता चिंता समाप्रोक्ता बिंदुमात्रं विशेषता।सजीवं दहते चिंता निर्जीवं दहते चिता॥ Hindiचिता और चिंता समान कही गयी हैं पर उसमें भी चिंता में एक बिंदु

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Sanskrit Subhashitas 125

Sanskritक्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥ Hindiक्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

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Sanskrit Subhashitas 126

Sanskritअपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥ Hindiहे लक्ष्मण! सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती है। माता और

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Sanskrit Subhashitas 127

Sanskritनारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥ Hindiसज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही

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Sanskrit Subhashitas 128

Sanskritनाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥ Hindiकोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम

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Sanskrit Subhashitas 129

Sanskritगते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् । वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥ Hindiबीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए

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Sanskrit Subhashitas 130

Sanskritयः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति।तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥ Hindiजो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का

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Sanskrit Subhashitas 131

Sanskritउदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥ Hindiउदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है,

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Sanskrit Subhashitas 132

Sanskritविदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥ Hindiविदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में

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